तुझ बिन न मेरी दिल्ली है

  इस कविता का संदर्भ यह है कि, जब कोई किसी व्यक्ति को प्रेम करता है तो केवल उसके देह को ही प्रेम नही करता है, वह प्रेम करता है उसकी रूह से, उसके अस्तित्व से, उसके द्वारा भेजे गए गीत से, उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा या बोली से, उसके नाम से, हर उस वस्तु, भाव या विचार से जो उससे जुड़ी हो। इसी क्रम में वो उस शहर या जगह को भी प्रेम करता है जहां उसने उसके प्रति प्रेम को जिया था, उसके साथ वक्त बिताया था , घूमने गया था। लेकिन जब उनका प्रेम बिछड़ जाता है, तो उसके लिए हर वस्तु जो उसके साथ जुड़ी थी वो उसी प्रकार की नही रहती। अब वस्तुओं , विचारो, जगहों के मायने बदल जाते है। यहां कवि 'दिल्ली' शहर को अपने प्रेम के शहर के रूप मे वर्णन कर रहा है और बतला रहा है की कैसे 'दिल्ली' शहर अब उसके लिए पहले जैसा नही रहा। 



तुझ बिन न मेरी दिल्ली है

न सुबह चुस्त है न शामे‌ं रंगीली है,

तुझ बिन न मेरी दिल्ली है।


तुझको ये समझाऊं कैसे,

इसके लिए तुझको मनाऊं कैसे।

कि तुझ बिन न हौज "खास" है ना चांदनीचौक चमकीली है,

तुझ बिन न मेरी दिल्ली है, तुझ बिन न मेरी....


है शिकायते बहुत पर बताता नहीं हूं,

है प्यार उससे भी ज्यादा पर जताता नहीं हूं।

कि तुझ बिन गर्मी की तपत है न सर्दी में ओंस गीली है,

तुझ बिन न मेरी दिल्ली है, तुझ बिन न मेरी....


जानता हूं एक दिन छोड़ जाओगी बिन बताए,

दे जाओगी ऐसी यादें जो हमेशा रखेंगी सताए।

कि चाहता हुं मान जाएं पर तू भी हठीली है,

तुझ बिन न मेरी दिल्ली है, तुझ बिन न मेरी.....


शायद मैं तेरे काबिल नहीं या तेरी है कोई और चाहत,

या इकरार करके मेरे लिए प्यार का दे मुझको राहत।

कि रखूंगा तुझे हमेशा खुश इस बात की तस्सली है,

तुझ बिन न मेरी दिल्ली है, तुझ बिन न मेरी....


बता क्या करू तेरे लिए की तू हो जाए मेरी,

क्या ख्वाइश है जो कर सकूं पुरी तेरी।

कि तुझ बिन गम से आंखे भी लाल पीली है,

तुझ बिन न मेरी दिल्ली है, तुझ बिन न मेरी....

© हितेशु

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