घर से दूर

 आज फिर से क्यों आंखे गीली है,

क्या जाना फिर से दिल्ली है?


जरूर पहना झूठी हंसी का लिबास है,

पर अंदर से दिल फिर से उदास है।


दूर जाने से मन बहुत नाशाद है,

और खुश रहने की तमाम कोशिशें बर्बाद है।


बस्ते में डाली ले जाने को मिठाई है,

लेकिन मन में फिर भी जाने क्यों खटाई है।


लेकर चले साथ में बहुत सी खुशियों की यादें है,

जिनसे न मिल सके उनसे अगली बार मिलने के वादें है।


आज भी हो रही हमेशा की तरह शाम है,

लेकिन नहीं आज कहीं घर जाने का नाम है।


दूर जाना भी जैसे जीतना एक खिताब है,

लेकिन दोस्तो से मिलने को भी दिल बेताब है।


*दिल्ली से तात्पर्य दूर जाने से है

Comments

Popular posts from this blog

अस्मिता

We are NOT proud

पुरुषत्व