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Showing posts from May, 2023

शायरी

1 .  होता है जब जिक्र तुम्हारा तो छा जाता है कोई सुरूर, अब तो मानना पड़ेगा तुमने कुछ तो किया है जरूर। 2.  सिर्फ़ एक ख्वाइश है तेरे साथ जीने की, कमबख़्त केवल बस वही पूरी नही होती। 3.   जब मिले तू खुदा से तो उसका शुक्रिया अदा जरूर करना, उसने कोई तो बनाया है इस जहां में तो तुझे बे-इन्तहा मोहब्बत करता है। 4.  वो बिलकुल इस चांद जैसी है, मुझे हरदम अच्छी लगती थी और उसे मेरे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

घर से दूर

 आज फिर से क्यों आंखे गीली है, क्या जाना फिर से दिल्ली है? जरूर पहना झूठी हंसी का लिबास है, पर अंदर से दिल फिर से उदास है। दूर जाने से मन बहुत नाशाद है, और खुश रहने की तमाम कोशिशें बर्बाद है। बस्ते में डाली ले जाने को मिठाई है, लेकिन मन में फिर भी जाने क्यों खटाई है। लेकर चले साथ में बहुत सी खुशियों की यादें है, जिनसे न मिल सके उनसे अगली बार मिलने के वादें है। आज भी हो रही हमेशा की तरह शाम है, लेकिन नहीं आज कहीं घर जाने का नाम है। दूर जाना भी जैसे जीतना एक खिताब है, लेकिन दोस्तो से मिलने को भी दिल बेताब है। *दिल्ली से तात्पर्य दूर जाने से है

सपने में तुम

 तुम कल रात फिर मेरे सपने में आए, और सपने में भी तुम मुझे छोड़ गए। तुमने नज़रे यूं फेरी जैसे कोई अंजान हूं मैं, और फिर से मेरा कांच का दिल तोड़ गए। तुम आज भी वैसे ही दिखते हो, भले अब देखे तुम्हे जमाने हुए। तुम्हारे लिए प्यार और भी बढ़ गया, जब से हम तुम्हारे लिए बैगाने हुए। चाहा मैने फिर से तुम्हारे कंधो पर बाजू रखना, तुम फिर से मेरी बाजू मरोड़ गए। तुम कल रात फिर मेरे सपने में आए, और सपने में भी तुम मुझे छोड़ गए। तुम चढ़ी बस में, मैं भागा पीछे, मैं चिल्लाया कि शायद तुम उतरो नीचे। मैने चाहा कि बैठे फिर से किसी बगीचे, और फिर से साथ में अपने सपने सींचे। चाहा मैने फिर से जान निछावर करना, लेकिन फिर तुम मुझसे मुंह मोड़ गए। तुम कल रात फिर मेरे सपने में आए, और सपने में भी तुम मुझे छोड़ गए। सोचा की चाय पर कहीं बतियाएंगे, तुम अपनी कहना हम अपनी सुनाएंगे। बचकानी बातों पर पागलों से हसेंगे, और प्यार की बातों पर शर्माएंगे। चाहा मैंने कि हम हमेशा साथ रहेंगे , लेकिन सपना खुलने से पहले ही तुम सपना तोड़ गए। तुम कल रात फिर मेरे सपने में आए, और सपने में भी तुम मुझे छोड़ गए।

तुझ बिन न मेरी दिल्ली है

  इस कविता का संदर्भ यह है कि, जब कोई किसी व्यक्ति को प्रेम करता है तो केवल उसके देह को ही प्रेम नही करता है, वह प्रेम करता है उसकी रूह से, उसके अस्तित्व से, उसके द्वारा भेजे गए गीत से, उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा या बोली से, उसके नाम से, हर उस वस्तु, भाव या विचार से जो उससे जुड़ी हो। इसी क्रम में वो उस शहर या जगह को भी प्रेम करता है जहां उसने उसके प्रति प्रेम को जिया था, उसके साथ वक्त बिताया था , घूमने गया था। लेकिन जब उनका प्रेम बिछड़ जाता है, तो उसके लिए हर वस्तु जो उसके साथ जुड़ी थी वो उसी प्रकार की नही रहती। अब वस्तुओं , विचारो, जगहों के मायने बदल जाते है। यहां कवि 'दिल्ली' शहर को अपने प्रेम के शहर के रूप मे वर्णन कर रहा है और बतला रहा है की कैसे 'दिल्ली' शहर अब उसके लिए पहले जैसा नही रहा।  तुझ बिन न मेरी दिल्ली है न सुबह चुस्त है न शामे‌ं रंगीली है, तुझ बिन न मेरी दिल्ली है। तुझको ये समझाऊं कैसे, इसके लिए तुझको मनाऊं कैसे। कि तुझ बिन न हौज "खास" है ना चांदनीचौक चमकीली है, तुझ बिन न मेरी दिल्ली है, तुझ बिन न मेरी.... है शिकायते बहुत पर बताता नहीं हूं,...